परिश्रम
परिश्रम
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पथरीली राहों पर चलते,
थकते है फिर भी है चलते,
रुकते भी पल भर को हम,
सौ पल जैसा हो जाता वो पल,
फिर चलते रहते मंजिल की तरफ
क्या होता है आगे देखो
सोच यही रखते है हम
हो चाहे पर्वतमालाएं
पहुंचना तो है अपनी मंजिल तक
सोच हमारी यही होती है
अभिलाषाओं की कोशिश में
हार भी हम कभी ना माने
हो चाहे तूफानी रफ्तार
परिभाषा के बल पर ही सही
थकते है फिर भी हम चलते हैं।।