तेरे लिए
तेरे लिए
प्यार करना भी वो सिखाते हैं और रूठना भी उनकी आदत है,
जब सांसे उनका नाम लेने लगी तो कहते हैं तुम पागल हो।
जब प्यार का रंग गहराया हथेलियों पे सुनहरा लाल सा,
तो कहते हैं इन लकीरों में हम नहीं तेरी हथेलियों में!
उनका कुछ रूठना इस कदर छाया रहा जलते ज़माने भर से,
ताउम्र हम मनाते रह गए और उन्हें लगा अभी नहीं बाद में।
ये बातें, ये रातें, ये उंगलियों से उनका काली ज़ुल्फों को यूँ हटाना,
हाथों में हाथ लिए यूँ ही बैठे रहना, समंदर की रेत के साथ- साथ चलना।
बड़े हँसी वो पलों को पलकों पे यूँ ही संजोए बैठे हैं तेरे इंतज़ार में,
कोई तो आए, बता दे कोई, खबर मिल जाये मुझे उस पार से।