अंधी दौड़
अंधी दौड़
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इसके पीछे दुनिया पागल है टूट रहे हैं नाते,
जो भी फंसे भंवर में इसके बस फंसते ही जाते।
अंधी दौड़ मची है कैसे बस में इसको कर लें,
क्या जाता है संस्कारों से थोड़ा चाहे गिर लें।
चाहे चोर-उचक्के हो बस दौलत उसके पास,
हाथ जोड़ कर उसको सारे कहते माई-बाप।
सच्चे प्रेम का मोल रहा न पैसा मोल बढ़ाए,
पैसा दिन-दिन बढ़े किन्तु इंसानियत घटती जाए।
रह गए बस दौलत के रिश्ते, नहीं है इंसानों का मोल,
हँसी खोखली, खुशी खोखली खोखले हो गए बोल।