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Sonam Kewat

Abstract Drama Others

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Sonam Kewat

Abstract Drama Others

आग और पतंगा

आग और पतंगा

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वो आग की तरह जल रहा था,

मै पतंगे की तरह चल रही थी।

आग बहुत ही जिद्दी था पर,

जिद उसकी चलती नहीं थी ।

एहसास छुपा था उन दोनों में,

बस एक दूजे से मिल जाने का ।

आग सोचे  जल ना जाए ये कहीं,

पतंगे की चाह आग में समाने का।

अब डर था आग को बस यही,

भस्म ना हो जाए मुझे छूकर।

और इसी डर से मार रहा वो,

हर पल पतंगे को कई ठोकर।

कोशिशे कई वो करता रहा,

आग चिंगारी से धधकता रहा।

साहस पतंगे में कम नही थी,

आग ने कहा मेरी मजबूरी है,

इसलिए बीच में यह दूरी है ।

संसार की ज़ंज़ीर ने जकड़ा है,

उड़ जा तुझे किसने पकड़ा हैं।

मैं तो बस उड़ ही जाती हूँ, 

फिर तेरी ओर खिंची आती हूॅ ।

कुछ पल ठहरे वो सोच रहे थे,

विरह में तो दोनों जल रहे थे।

ठीक हैं होगा वह जो तू चाहे,

चल अब दोनों एक हो जाए।

जलकर खाक हो रहा था वो,

पल भर में खो रही थी वो।

दर्द था आग को जलाने का, 

खुशी भी हुई उसे पाने का ।

बस वो आग यूँ जलता रहा,

मैं पतंगा भी यूँ जलती रही।

इतिहास ने कहा कुछ न कहूँगी,

कहानी यह दोहराती रहूँगी।

ना समझना सिर्फ कहानी है,

अब तो यह सब चलता है।

दुनिया के कोने में आज भी,

कही आग और पतंगा जलता है।


https://youtu.be/ylfHFbxk_IA


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