लाडो
लाडो
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ठुमक ठुमक के चलती थी वह,
छम छम पायल बजती थी ।
अभी इधर थी अभी उधर थी,
चलती थी या उड़ती थी ।।
सहज मधुर मुस्कान अधर पर,
नयन बात को आतुर थे ।
भौंह चढाकर आंखें मीचे ,
कई कहानी कहती थी ।।
जयपुर से गुड़िया लाई थी ,
शक्ति कह कर बुलाती थी ।
सुत सी उसको उर से सटाये,
ख्याल में जीती मरती थी।।
कभी गले में झूला डाले,
कभी सवारी घोड़े की ।
कभी कभी वह मुंह को फुलाए,
धम धम पाव पटकती थी ।।
छीना बचपन बचपन ही में ,
ईश न्याय कैसा है यह ।
थी अबोध वह मेरी लाडो ,
जाने क्या क्या कहती थी ।।
शुष्क होठ चुप बैठे हैं अब ,
पत्थर जड़ गए आंखों में ।
रक्त जम गया नयन कोर में ,
मेरी लली न लगती थी।
राम राज्य में रहने वालों ,
दहन तिहारा होना होगा ।
तड़पो जैसे वह तड़पी थी,
जी से आह निकलती थी ।।