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Richa Rai

Crime Drama Tragedy

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Richa Rai

Crime Drama Tragedy

लाडो

लाडो

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ठुमक ठुमक के चलती थी वह,

छम छम पायल बजती थी ।

अभी इधर थी अभी उधर थी,

चलती थी या उड़ती थी ।।


सहज मधुर मुस्कान अधर पर,

नयन बात को आतुर थे ।

भौंह चढाकर आंखें मीचे ,

कई कहानी कहती थी ।।


जयपुर से गुड़िया लाई थी ,

शक्ति कह कर बुलाती थी ।

सुत सी उसको उर से सटाये,

ख्याल में जीती मरती थी।।


कभी गले में झूला डाले,

कभी सवारी घोड़े की ।

कभी कभी वह मुंह को फुलाए,

धम धम पाव पटकती थी ।।


छीना बचपन बचपन ही में ,

ईश न्याय कैसा है यह ।

थी अबोध वह मेरी लाडो ,

जाने क्या क्या कहती थी ।।


शुष्क होठ चुप बैठे हैं अब ,

पत्थर जड़ गए आंखों में ।

रक्त जम गया नयन कोर में ,

मेरी लली न लगती थी।


राम राज्य में रहने वालों ,

दहन तिहारा होना होगा ।

तड़पो जैसे वह तड़पी थी,

जी से आह निकलती थी ।।



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