नज़रों का मिलना .....
नज़रों का मिलना .....
मिलती हैं निगाहें,
दिल भरता है आँहें
सिर्फ एक झलक मिलते ही वो धड़कन का बढ़ना
यादों में भी जब दिख जाती है
बेचैन कर देता हैं
वो तेरी नज़रों से
मेरी नज़रों का मिलना ...
न कुछ कहना, न कुछ सुनाना
चुपचाप रहकर वो आँखों से बतियाना
दिल के झरोखों से, धड़कन को छूना
जब इक दूजे के बिना, लगता हो यह जग सूना
हर तन्हाई मिटा देता है,
वो तेरी नज़रों से
मेरी नज़रों का मिलना ...
एक दूजे की सांस में, अपनी ज़िन्दगी को ढूँढना
वो लबो को छूते वक़्त, आँखों का मूंदना
शर्म से मिलाना नज़र, और ख़ुशी से मुस्कुराना
इक दूजे के दिल का हाल यूँ, बिन कहे बतलाना
हर लम्हा, साँसों की तपिश बढ़ा देता है
वो तेरी नज़रों से
मेरी नज़रों का मिलना ...
है एहसास वो इक दूजे की चाहत का
कुर्बत के पलों का, जन्नत की राहत का
दूर तक छाये सन्नाटे में, तेरी करीबी की आहट का
बिना छूए इक दूजे को, इक दूजे के करीब रहने का
हर लम्हा इक दूजे के करीब आने की कहानी कहता है
वो तेरी नज़रों से
मेरी नज़रों का मिलना ...