रिश्तों का अर्थशास्त्र
रिश्तों का अर्थशास्त्र
रिश्तों के बदलते मायने
अब वे अहसास नहीं रहे
बन गये अहं की पोटली
ठीक अर्थशास्त्र के नियमों की तरह
त्याग की बजाय माँग पर आधारित
हानि और लाभ पर आधारित
शेयर बाजार के उतार - चढ़ाव
की तरह दरकते रिश्ते
ठीक वैसे ही
जैसे किसी उद्योगपति ने
बेच दी हो घाटे वाली कम्पनी
बिना समझे किसी के मर्म को
वैसे ही टूटते हैं रिश्ते
आज के समाज में
और अहसास पर
हावी होता जाता है अहं।
[ कृष्ण कुमार यादव ]