आज फिर
आज फिर
आज फिर बारिश हुई,
पर केवल उसके घर,
सन्नाटे में चुपचाप,
एक शोर खत्म हो गया !
आज फिर मोहब्बत हुई,
पर फिर उनके ही दर,
समाज मोहब्बत को,
बेकार समझ बैठा !
आज फिर सवेरा हुआ,
पर केवल उनके लिए,
जो अपना हर सपना,
साकार कर गया !
आज फिर लौटा मैं घर,
पर सब दुःखी हुए,
मैं ज़मानत को अपनी,
आज़ादी समझ बैठा !
आज फिर ज़िन्दगी का,
एक पन्ना पलट गया,
और मैं हर पन्ना,
जलाकर चला गया !
आज फिर वो सहमी रही,
कई चेहरे बावले हुए,
इंसानियत को कोई,
आम समझ बैठा !