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Asha Pandey

Drama Tragedy

5.0  

Asha Pandey

Drama Tragedy

जब माँ थीं

जब माँ थीं

1 min
13.6K


बजती थीं पूजा की घंटियाँ

होता था सबेरा |

अब माँ नहीं हैं

नहीं हुआ है युगों से सबेरा |


जब माँ थीं

होती थी रात

मै सोती थी माँ की साड़ी पकड़कर |

अब माँ नहीं हैं

नहीं हुई है युगों से रात |


खनकता रहता है

सूनापन मेरे भीतर

पहाड़ – सा बोझ लिए

तरसते रहते हैं

उस घर के कोने

जहाँ माँ थी |


अब मैं एकांत में

जोर से बुलाती हूँ ,

'माँ...!'

और सुनती हूँ वह ध्वनि

जो दीवार से टकराकर

लौट आती है फिर मेरे पास

काँप जाता है मेरा शरीर

अपने ही मुख से बोले गये

'माँ' शब्द को सुनकर |


अब माँ नहीं हैं

अब हैं माँ की किताबे

माँ की चटाई

माँ का चश्मा |


मैं, माँ की चटाई बिछाकर

माँ का चश्मा लगाती हूँ

और माँ की किताबों में

खोजती हूँ माँँ...!





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