कामिनी
कामिनी
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मनमोहिनी वो मोह गयी,
दिल को ऐसा टोह गयी,
मृगनयन थी आँखें उसकी,
बाट इश्क़ की जोह गयी !
थे कपोल ज्यूँ पुष्प कंज,
अप्सरा को दे कर के रंज,
तब कहकहा था लग रहा,
थे बरस रहे कुछ पुष्प पुंज !
थे अधर गुलाब से महक रहे,
सब भ्रमर बास से चहक रहे,
था दमक रहा वो यूँ ललाट,
कुछ क़दम भी थे बस बहक रहे !
बलखा रही थी कटि सर्पिनी,
जब चल रही थी गजगामिनी,
क़ैद हो कर यादों में वो,
है लफ़्ज़ों में उतर रही कामिनी !