माँ
माँ
माँ
माँ तुझे क्या करूँ मैं अर्पण,
मेरे शब्द नहीं हैं चँदन,
किया कृत्ज्ञ मुझे दे जीवन,
माँ !मैं हूँ तेरा ही दर्पण।
तुझे नहीं कभी थकते देखा,
तुझे नहीं कभी झुकते देखा,
हार नहीं तूँ विजय स्वामिनी,
तेरे मुखमंडल पर मैंने,
सदैव देखी चमक दामिनी।
माँ तुझे क्या करूं मैं अर्पण,
मेरे शब्द नहीं हैं चँदन।।
माँ!मैं तुझसे बस इतना चाहूँ,
जब आँख खुले तुझे ही पाऊँ,
तूँ रहे सदा मेरे मनमन्दिर में,
तेरी ज्योति जले इस हिय में,
तेरा हस्त सिर रहे सदा,
तूँ ही तो मेरी अपराजिता।
माँ तुझे क्या करूँ मैं अर्पण,
मेरे शब्द नहीं हैं चँदन।।
तुझ से चलना मैंने सीखा,
शिखर पे चढ़ना मैंने सीखा,
जो यह बोल आज बोले हैं,
तूने ही तो कण्ठ खोले हैं,
माँ तेरे वंदन को कम ये जीवन,
अगले जन्म हो तुझ में ही स्पन्दन।
माँ तुझे क्या करूँ मैं अर्पण,
मेरे शब्द नहीं हैं चँदन।।
जीवन में जो कर्ज़ उतारूँ
सौभाग्यवान मैं स्वयं को पाऊँ,
ऐसा जग में कौन है जन्मा,
चुकाए श्रृण तेरा आजन्मा,
तेरे बंदन को शब्द नहीं हैं,
तेरा नमन करूँ कर्म यही है।
माँ तुझे क्या करूँ मैं अर्पण,
मेरे शब्द नहीं हैं चँदन।
माँ ---
माँ ! तू दिये जैसी है
खुद जल कर रोशन
करती है जीवन मेरा।
माँ ! तू अलाव है सर्दियों काम
ठिठुरते एहसासों को
गर्माहट भर के
रक्त धमनियों में
संचारित करती है।
माँ ! तू हरियाली है खेतों की
तुझे देख झूमती हैं
मेरे मन की फ़सलें।
माँ ! तू आसमान है
ओढ़े रहती हूं तेरी
आशिष तेरी न
रहने पर भी।
माँ ! तू धरा है
बिछी रहती है
मेरे हर अच्छे बुरे
फ़ैसले पर ,मेरे
क़दमों के नीचे।
माँ !तू सागर है
अथाह गहराईयों में भी
मेरी ही चिंता में तेरा नीर
हिलोरें मारता है
मेरे सदकों में
तटों से टकराता है।
माँ !तू पूरा संसार है
तेरे बिन जीवन दुश्वार है
माँ ! तू माँ है
तुझी से मेरा जीवन
साकार है।