कोई ख़्वाब
कोई ख़्वाब
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कोई ख़्वाब मुकम्मल नज़र आता नहीं
शायद सब ख्वाबों को तोड़ दिया है
अब अंजुमन से कोई झांकता भी नहीं
शायद मैंने रूह को निचोड़ दिया है
कोई ख्वाब मुकम्मल नज़र आता नहीं
जख्मों ने दिल को खरोच दिया है
अब इन आँखों में कोई बस्ता भी नहीं
शायद हर आईना इन्होने तोड़ दिया है
कोई ख्वाब मुकम्मल नज़र आता नहीं
नींदों ने रातों को ही बटोर लिया है
अब इस दुनिया में सुकून आता नहीं
शायद सच्ची इबादात ने दर छोड़ दिया है