ज़िद
ज़िद
एक ज़िद है आगे बढ़ने की,
एक ज़िद है आसमान छूने की,
एक ज़िद है अन्याय से लड़ने की,
एक ज़िद है देश पर मिटने की।
उस ज़िद को ही जी जाना है,
उस ज़िद में ही मर जाना है,
ना जाने कब वो ज़िद जुनून बनी,
कब लक्ष्य में तब्दील हुई,
कब जीवन का सार बनी।
हर सपने में, हर विचार में,
मेरे कण –कण में,
मेरे जीवन की वो प्यास बनी
उस ज़िद को जी जाना है,
उस ज़िद में मर जाना है।
अब लक्ष्य को ही पाना है,
हर मुश्किल, हर कठिनाई से,
हँसते –हँसते पार हाँ पाना है,
जो सोच लिया, जो ठान लिया
उसको पूरा कर जाना है।
उस ज़िद को जी जाना है,
उस ज़िद में मर जाना है।