अल्फ़ाज़
अल्फ़ाज़
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कुछ ऐसी बदली होती है फिर अंदाज़ में,
और एहसास तब्दील होते हैं अल्फ़ाज़ में।
किसी की आंखों में खुद को पाने लगे जब कोई,
उसके साथ सुहानी ज़िंदगी के सपने सजाने लगे जब कोई,
जब हामीं लगने लगे उसके हर एतराज़ में,
और वो शामिल हो उसकी हर नमाज़ में
कुछ ऐसी बदली होती है फिर अंदाज़ में,
और एहसास तब्दील होते हैं अल्फ़ाज़ में।
वो मुस्कुराए तो मानो खुदा की रहमत बरसे,
हर एक पल, हर घड़ी आंखें जब उसके दीदार को तरसे।
उसकी मौजूदगी में जैसे तेवर छलकने लगे मिजाज़ में,
और उसके होने के यकीन से हो एक हौसला सा दिल की आवाज़ में।
कुछ ऐसी बदली होती है फिर अंदाज़ में,
और एहसास तब्दील होते हैं अल्फ़ाज़ में।
अपने हाथों की मेहंदी में जब वो किसी का नाम छुपाती है,
उसके बारे में सोच कर भी जो पलके झुका कर बस शर्माती है।
जब उसकी धड़कने भी चलती है किसी और की धड़कनों की साज़ में,
और ख़ुदा नज़र आने लगता है उसे अपने हमराज़ में।
कुछ ऐसी बदली होती है फिर अंदाज़ में,
और एहसास तब्दील होते हैं अल्फ़ाज़ में।