मैंने तो वक़्त बदलते देखा है
मैंने तो वक़्त बदलते देखा है
मैंने तो वक़्त बदलते देखा है,
मौसम और ऋतुओं के संग,
लोगों का दहेज़ के प्रति,
मत बदलते देखा है।
मैंने तो वक़्त बदलते देखा है,
कल तक जो दहेज़ लेने को,
रस्म बताया करते थे,
और दहेज़ में लायी चीजों में।
बहु को कमी गिनाया करते थे,
आज उन्हें ही दहेज़ खिलाफ,
पोस्ट लगाते देखा है,
मैंने तो वक़्त बदलते देखा है।
कल तक जिन्होंने सुनाया,
स्टील के बर्तन नहीं चलेंगे,
जो पीतल का बर्तन नहीं दिया,
तो शादी का दिन नहीं रखेंगे।
आज उन्हीं लोगों को,
दहेज़ के खिलाफ,
नारा लगाते देखा है,
मैंने तो वक़्त बदलते देखा है।
जो तुम सच में बदले हो,
तो बदलाव करो अपने घर से,
वरना जियो ऐसे ही,
दोहरी दुनिया में घुट-घुट
जल्दी ही तुम ऊपर आओ,
इस लेनदेन के चक्र से वरना,
नारी कभी न उठी है,
इस बहु बेटी के स्तर से।