लुभावना रूप
लुभावना रूप
अब सीने में वो आग नहीं हैं
कपड़ों में वो झाग नहीं हैं।
जिस घर में माँ-बाप नहीं हैं
वहां काशी-प्रयाग नहीं हैं।
चांद से भी रूप लुभावना हैं तेरा
तुझ पर कोई भीं दाग नहीं हैं।
कितनी बार करते हो तुम गलतियाँ
लगता हैं तुमको दिमाग नहीं हैं।
है वो आदमी बेपरवाह थोड़ा
पर ज़हरीला नाग नहीं हैं।