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Mrs Trupti Waingankar

Inspirational

5.0  

Mrs Trupti Waingankar

Inspirational

मुक्ति

मुक्ति

2 mins
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जीवन की इस दौड़-धूप में

एक दिन आकाश की ओर नज़र गई,

उड़ रहे थे अपनी धुन में

तरह-तरह के पंछी कई...


तब याद आई वो बचपन की कहानी

जो माँ सुनाया करती थी,

पिंजरे में बंद; मैना काली

दुख के गीत गाया करती थी...


तब नहीं था पता

और ना ही था कोई एहसास,

जिंदा रहकर भी क्या जीना

जब पिंजरे में ही समाया सारा आकाश...

अब लग रहा है...


उनके भी कोई सपने होंगे

होगा उनका भी कोई परिवार,

एक तरफ पिंजरे में बंद मौत की घड़ियाँ

और दूसरी तरफ घोंसलों में समाया इंतज़ार...


ऐसे ही खत्म होता होगा

मुक्ति की आशा में जीवन,

अपनों को भी देख न पाते होंगे

ऐसे ही चले जाते होंगे सावन...


जब हुआ यह यकीन

अपनों के साथ ही जीना है मुमकिन,

तब लौटकर आते ही घर

सोचा लौटा दूँ; उनका यह आकाश रंगीन...


तब ढूँढ़ने लगी मैं गली-गली

शहर-शहर मैंने छान लिया,

खरीदकर खोल दिया पिंजरों को

कैदियों को मुक्ति का आनंद दिया...


वही आनंद लेकर मैं भी लौटी घर

उड़ने लगी मैं जैसे उसी उड़ान में,

भूख-प्यास मेरी मिट-सी गई

भर लिया मुक्ति का आनंद अपने भी मन में...


न है उन्हें अभी आकाश का बंधन

पर चिंता ज़रूर होगी अपनों की,

लौटकर जाते होंगे अपनी दुनिया में

सुंदर बने-बनाए सपनों की...


आकाश में ऊँचे उड़ना ही

है उनके जीवन की चाह,

पिंजरे में बंद रहकर जीना

यह भी है कोई जिंदगी की राह ?


जिंदगी की राह तो

बंधनों से मुक्त है,

फिर भी पिंजरे के लिए

कौन-सा पंछी आसक्त हैं...


सिर्फ़ दाना-पानी से

अगर ये जिंदगी गुज़रती,

तो पंछियों को ऊँचे उड़ने के लिए

पंखों की क्या ज़रूरत थी ?


मुफ़्त के दाना-पानी से भी ज़्यादा

उन्हें मेहनत अच्छी लगती है,

जीवन की सच्चाई सीख लो उनसे

कड़ी मेहनत से ही जिंदगी सजती है...


किसने बनाए ये पिंजरे ?

करने पंछियों को क़ैद,

पंखों को छाँट दिया उनके

दिखाने अपना ऐब...


उनकी भी अपनी दुनिया है

उनका भी अपना घोंसला है,

क्यों लाए हमारे बीच उन्हें ?

आकाश-धरती में कितना बड़ा फ़ासला है...


जीने दो उन्हें अपनी दुनिया में

पिंजरे में बंद कर मज़बूर न करो,

इन्सान हो, इन्सान ही रहो

तुम इन्सानियत को दूर न करो...








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