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Shiva Aithal

Abstract

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Shiva Aithal

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न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने

न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने

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अपने मोहल्ले में झगडा था जिससे मैं

दिल्ली की गली में उसको देखा, तो मुझे

न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने लगा...

पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया का क्रिकेट मैच देख रहा

तो पाकिस्तान और अफरीदी को देख,

न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने लगा...

लोड शेडींग के इस ज़माने में, तंग तो बहुत किया

पर बिजली का बिल देख कर - लोड शेडींग  

न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने लगा...

मोटर साइकिल और गाड़ी शौक से खरीद तो लिये

बढ़ते प्रदुषण और पेट्रोल की दरें देख – साइकिल का साथ

न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने लगा...

सरकारी नौकरी में नोटों की क़ाबलियत पर मात और

बदले में बढती रिश्वतखोरी देख – बेकार और बेकारी

न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने लगा...

समझदारों की समझ और उनकी बहस भरे सवाल देख

नासमझ की मासूमियत और उनका सवाल

न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने लगा...

यह धर्म, कर्म, नीति, राजनीति की बातों से

घर में घरवाली और अपने बच्चों की बातों से

न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने लगा...

बाहर खाना खाकर घर में कुल्ला करने से

घर में खाना खा कर बाहर कुल्ला करना

न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने लगा...

एक सौ साठ टीवी चैनल ढूँढकर कुछ न हासिल करने के बजाय

विविध भारती और सीलोन ढूँढना

न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने लगा... 


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