न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने
न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने
अपने मोहल्ले में झगडा था जिससे मैं
दिल्ली की गली में उसको देखा, तो मुझे
न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने लगा...
पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया का क्रिकेट मैच देख रहा
तो पाकिस्तान और अफरीदी को देख,
न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने लगा...
लोड शेडींग के इस ज़माने में, तंग तो बहुत किया
पर बिजली का बिल देख कर - लोड शेडींग
न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने लगा...
मोटर साइकिल और गाड़ी शौक से खरीद तो लिये
बढ़ते प्रदुषण और पेट्रोल की दरें देख – साइकिल का साथ
न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने लगा...
सरकारी नौकरी में नोटों की क़ाबलियत पर मात और
बदले में बढती रिश्वतखोरी देख – बेकार और बेकारी
न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने लगा...
समझदारों की समझ और उनकी बहस भरे सवाल देख
नासमझ की मासूमियत और उनका सवाल
न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने लगा...
यह धर्म, कर्म, नीति, राजनीति की बातों से
घर में घरवाली और अपने बच्चों की बातों से
न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने लगा...
बाहर खाना खाकर घर में कुल्ला करने से
घर में खाना खा कर बाहर कुल्ला करना
न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने लगा...
एक सौ साठ टीवी चैनल ढूँढकर कुछ न हासिल करने के बजाय
विविध भारती और सीलोन ढूँढना
न जाने क्यों अचानक अच्छा लगने लगा...