ज़र्द पत्ते
ज़र्द पत्ते
सुबह ए शबनम गिर, नातवाँ शाख़ से ही फ़ना हो
सब्ज़ रंग था कभी
जगा हो गया।
हमदम तेरा हमराह दुश्मन हुआ, वक़्त बदला तेरा क्या से क्य
सा भी जो मेह-लख़ा हो गयामैं ही मे
सुबह ए शबनम गिर, नातवाँ शाख़ से ही फ़ना हो
सब्ज़ रंग था कभी
जगा हो गया।
हमदम तेरा हमराह दुश्मन हुआ, वक़्त बदला तेरा क्या से क्य
सा भी जो मेह-लख़ा हो गयामैं ही मे