कब तक,ये आग यूँ बरसेगी
कब तक,ये आग यूँ बरसेगी
कब तक, ये आग यूँ बरसेगी ।
जन्नत सुख चैन ,को तरसेगी ।।
कब तक होंगी गोदें सूनी,सिंदूर मांग को तरसेगा,
राखी भी मांगे हक अपना ,पानी आंखों से बरसेगा,
नन्ही सी जान यूँ बिलख रही,प्यार पिता का तरसेगी।
कब तक ये,आग यू बरसेगी।।
लहु बहाया है तूने ,देदी अपनी क़ुरबानी है,
बना तिरंगा शान ये तेरी ,सच्ची तेरी जवानी है,
रणचंडी बन खून मांग रही,और ये कितना परखेगी।
कब तक, ये आग यूँ बरसेगी।।
भारत माँ के शेर खड़े हैं,कफन बाँध अपने सर पर,
गद्दारों की औकात कहाँ,लहरा दें पताका भी यम पर,
देख रूप विकराल यहाँ,दुश्मन की छाती दरकेगी।
कब तक, ये आग यूँ बरसेगी।।
कर देंगे कलम सर उसका गर,कोई बुरी नजर जो उठ जाये,
सुलग रही ज्वाला नफरत की,काश:आज वो बुझ जाये,
हो रही लहू की प्यासी जो, तलवार म्यान से सरकेगी।
कब तक, ये आग यूँ बरसेगी।।
जन्नत सुख चैन ,को तरसेगी।