गीतिका
गीतिका
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जिन के' इंसानियत के' नाते हैं ।
बस वफ़ा भी वही निभाते हैं ।। 1
सत्य की भूमि कर्म के हल से
भूमि समतल चलो बनाते हैं ।। 2
बह रही प्यार की हवाओं में
मन - पतंगें ज़रा उड़ाते हैं ।। 3
जिन को' पूछा नहीं जमाने ने
बढ़ के' उनको गले लगाते हैं ।।4
शिष्य एकलव्य सा नहीं मिलता
द्रोण भी अब नज़र न आते हैं ।।5
जो न हमदर्दियों के हैं हामी
व्यर्थ आँसू बहुत बहाते हैं ।।6
दूर तक सिलसिले जफ़ाओं के
लोग बातें बहुत बनाते हैं ।।7
------------------- डॉ. रंजना वर्मा