स्त्री विमर्श
स्त्री विमर्श
तुमने कहा उसने राम को आक्षेपित किया सीता के लिए
कृष्ण और अर्जुन को द्रौपदी के लिए
सीता ने नही,द्रौपदी ने भी नही
तुमने कहा अन्य पुरुषों को
वो कहती आई है वो सब
जो कभी नही कहा उसने
अपने पुरुष से
उसका स्त्री विमर्श दिखावा है
तुमने लगाया ये आक्षेप
सुनो हे अन्य पुरुष
ध्यान से सुनो
उसके मौन का चीत्कार
उसके खिलने से ढलने के बीच
पसरा हाहाकार
सवाल पूछे हैं
उसके आंसुओं की लड़ियों ने
उसकी खामोश सिसकियों ने
उसके निरन्तर गिरते जा रहे स्वास्थ्य ने
उसकी दम तोड़ती इच्छाओं ने
उसके बेमन से किये समर्पण ने
पुरुष भी समझता है
कितने वाचाल हैं ये मूक प्रश्न
और पूछे न जाकर भी पर्याप्त
खड़ा करने को उसे कटघरे में
पूछे जाने से नही बल्कि न पूछे जाने से होता है
पुरुष लज्जित और पराजित