अपना अस्तित्व ,अपना गुण
अपना अस्तित्व ,अपना गुण
यूँही बैठी, उपवन में ।
सोच रही, मन ही मन में ।।
खुशबू फूलों में, कहाँ से आयी।
मन्द- मन्द क्यों, चलती पुरवाई।
बरखा से माटी, क्यों महके ।
कमल सरोवर में ही, क्यों दहके ।
श्वेत दूध का, रंग है क्यों ।
रक्त का रंग, लाल है क्यों ।।
नीर, रंग विहीन है, क्यों ।
तितली रंग बिरंगी, है क्यों ।
नदी का स्वर, कलकल क्यों ।
झरने का स्वर, छमछम क्यों
स्वर कौए का, कर्कश क्यों ।
कोयल का स्वर, मीठा क्यों ।।
इन सब का कुछ, मतलब होगा
अर्थ विहीन न कोई, तर्क होगा