एक राज़ के लिए
एक राज़ के लिए
ढेरों उँगलियाँ उठ रही हैं,
लाँछन लगाये जा रहे हैं -
सम्बन्धों की पवित्रता पर,
एक शोर सा बरपा है !
उठो वक़्त आ गया शायद
अपनी क़स्मों को निभाने का,
इश्क़ की पुरानी रस्मों पर
अब ख़ुद को आज़माने का !
ये ज़ालिम दुनिया वाले
आज एक बार फिर से
अपना 'फ़र्ज़' निभा रहे हैं,
मगर हमें सामना करना है।
तुम्हारी रहस्यमयी हक़ीक़त
जान लेने पर यूँ आमादा
इस हुजूम के प्रयत्नों को
मिलके विफल बनाना है !
मेरी महबूब, मेरी कल्पना,
जान-ए-तमन्ना, घबराना नहीं,
अनसुना कर दो इस शोर को
वादा रहा राज़ खुलेगा नहीं !
आओ तुम्हें बाँहों में छिपा लूँ,
समा जाओ मेरी आग़ोश में -
यहाँ तुम बिल्कुल सुरक्षित हो,
जब तलक कि मैं हूँ !