गर्मी की मार
गर्मी की मार
गर्मी की मार ने है मार ड़ाला
ना ही कहीं जाने की इच्छा
ना ही कहीं घूमने को दिल चाहे।
घर से निकलने को ना चाहे दिल
दिल ये करे कि बार बार
पानी में डुबकी लगाए।
पानी पी पी कर ही पेट भर जाए
खाना खाने की इच्छा नहीं होती
हल्का पुलका ही खाकर पेट भर जाए।
धूप में पसीने से कपड़े कपड़े
थर थर बार बार हो जाते हैं
कितनी बार कोई पानी मे डुबकी लगाए।
ये मौसम भी है बड़ा ही बेकार
सर्दी वर्षा का मौसम होता सुहाना।