तृषा
तृषा
तृषा कभी सन्यास हो तुम, या बचपन का उल्लास हो तुम।
कभी किसी सच सी लगती हो, कभी कभी आभास हो तुम।……
कभी राहों की मंजिल सी हो, कभी सफ़र तुम बन जाती हो।
कभी तरसता यौवन हो तुम, कभी कभी उपवास हो तुम।…तृषा कभी सन्यास ….
औरों की उम्मीद बनी तुम, खुद को बेउम्मीद बना के भी।
कभी ठहरता झरना हो तुम, कभी सागर की प्यास हो तुम।……..तृषा कभी सन्यास….
कभी देवी सी करुणा तुम में, कभी मनमोहक श्रृंगार हो तुम।
कभी मीरा की उम्मीद बनी तुम, कभी राधा की आस हो तुम।
तृषा कभी सन्यास हो तुम या बचपन का उल्लास हो तुम.....