प्रकृति
प्रकृति
चिड़िया चहकती गाती है,
गीत नए सुमिरन के,
तितली मंडराती फूलों पे,
रंग हैं कितने जीवन के।
ये पंछी गाते हैं सरगम,
इधर उधर उपवन में,
ये पत्ते गिरते मुरझाते,
फिर खिलते सावन में।
ये नदिया की धारा कहती,
चलते तुम चलते ही जाओ,
रुकना नहीं है और कहीं भी,
जाके सागर में मिल जाओ।
धरती क्या है, क्या है गगन,
उनसे दृष्टी तुम लक्ष्य की पाओ,
सूरज यशस्विता का,
तुम अपने अंदर से ले आओ।
सीखो इनसे तुम भी,
ये बातें भी रखना ध्यान में,
नक़ल उतरो इनकी तुम भी,
पछताना ना बाद में।
नियम प्रकृति का है,
वक़्त से आगे तुमको है चलना पर,
दौड़ के आना तुम इसकी,
हर कोई फ़रियाद में।