चुप्पी
चुप्पी
रोटी बनाते वक्त
कुछ सोचती है स्त्री
कपड़े धोते वक्त भी
किन्हीं विचारों में गुम रहती है
कमरे में पोछा करते हुए
किसी और दुनिया में
विचर रही हो सकती है वो
अक्सर कुछ सोचते हुए
तवे या कड़ाही से हाथ भी
जला बैठती है
और कई बार तो यूँ भी हुआ है कि
सामने चूल्हे पर चढ़ा दूध
उसकी आँखों के सम्मुख
उबल कर बह गया और
उसे दिखाई ही न पड़ा
किसी भी घरेलू कार्यक्रम पर
पुरुष की पंचायत में
स्त्री कुछ कहना चाहती है
पर चुप्पी लगा जाती है
मगर सोचती रहती है
अपने बच्चे को कुछ सोचते पाकर
चिंतित हो जाती है स्त्री
अपनी संतान का तनाव
विचलित कर देता है उसे
स्त्री न जाने क्या क्या सोचती है
दुनिया जहान की बातें
इतना क्यूँ सोचती है स्त्री ??
खैर, उसके आटा गूँथने,
लोई बनाने और
रोटी बेलने-सेंकने से
उसकी सोच के प्रवाह में
कोई अंतर नहीं पड़ता
अक्सर वो रोटी बेलना
और सेंकना छोड़ कलम उठा लेती है
और उकेर देती है
कागज़ पर कुछ कविता सा
अगली बार जब
तुम रोटी खाने बैठो
तो सोचना कि
उस रोटी को स्त्री ने
क्या सोचते हुए बनाया होगा !