बदरंग चांद
बदरंग चांद
बदरंग सा दिखता है चांद
उस झरोखे से …
जहां किसी के सपनों को यूं
बिखेर दिया जाता है
बदरंग सा दिखता है चांद
उस झरोखे से …
जहां किसी की आखिरी उम्मीद का भी
गला घोंट दिया जाता है
बदरंग सा दिखता है चांद
उस झरोखे से …
जहां एक नन्ही सी जान को
दुनिया में आने से रोक दिया जाता है
बदरंग सा दिखता है चांद
उस झरोखे से …
जहां कन्धों पर बस्ते की जगह
काम का बोझ डाल दिया जाता है
बदरंग सा दिखता है चांद
उस झरोखे से …
जहां किसी अबला की आबरू को
सरेआम नीलाम किया जाता है
बदरंग सा दिखता है चांद
उस झरोखे से …
जहां बुजुर्गों को उनके ही आशियां से
बेघर कर दिया जाता है
पर जहां…
किसी के सपनों को पंख
किसी के उम्मीद को सहारा
किसी के अस्तित्व को सम्मान
किसी को उनके हक़ का मान
मिलता है …. तो वही
बदरंग सा चांद
मुस्करा उठता है
और अपनी बेशुमार चमक से
समां को रौशन कर देता है।