अहसास
अहसास
वो एक बिल्कुल
नया अहसास था,
जो मैंने कभी तुझसे पाया था।
वो एहसास जिसे जीने की
कसमें खायीं थी हमने
बड़े हक़ से बंद की थी,
मुट्ठियों में सपनों की एक लिस्ट।
बड़े जतन से सजाई थी
वादों की इमारतें हमने
यूं बीत जाते थे कब दो पहर
कब बातों में हो जाती थी
फिर नई सुबह।
हर रात वो झिंगुरी का
बैकग्राउंड म्यूजिक,
सन्नाटों में सांस लेती खामोशी
दूर कोहरे में कपकपता था
तेरा वही नया एहसास
ठिठुरता मुस्कुराता
सच इस हद में गुज़र करता है
की बस ज़हर पे लिख दिया जाता है
की वो ज़हर है।
कई रोज़ से कोई सुबह नही उगी
उस झिंगुरी को मरे एक अरसा हो गया
जेठ की दोपहर है कि कटती ही नही
तेरे जाने के बाद वो एहसास
बहुत बिलख के रोया था उस रात
उस अहसास को घुट-घुट मरते देखा हमने।