कमजोर समझना आदत है
कमजोर समझना आदत है
वैसे तू कमजोर समझता है उसे पर,
देवी समझकर करता उसकी इबादत है।
हाँ, ग़लती नहीं है तेरी क्योंकि,
औरतों को कमजोर समझना तो,
आजकल हर किसी की आदत है।
वह बेटी थी तो बेटों और बेटियों में,
उसे कभी कभी फर्क दिखाया गया था।
नाम रौशन वो भी कर रही थी पर
बेटे को घर का गर्व बताया गया था।
बेटा मजबूत होता है तो बेटियों में,
कोमलता की मिलती नज़ाकत है।
वैसे ग़लती नहीं है तुम्हारी क्योंकि
यहाँ बेटियों को पराया कहना,
आजकल हर किसी की आदत है।
वह पत्नी थी तो उसे जिम्मेदारियों,
का एहसास कराया गया था।
नाम वो भी कमाना चाहती थी पर ,
उसे घर संसार का पाठ पढ़ाया गया था।
पति खर्चा उठाता है यहाँ तो,
पत्नी चरणों में रहने वाली एक साधक है।
वैसे ग़लती नहीं है तुम्हारी क्योंकि
पत्नी को चार दीवारों में क़ैद करना,
आजकल कुछ लोगों की आदत है।
वह माँ बनी थी तो सब कुछ भुलाकर,
उसने नया संसार अपनाया था।
अपने सारे ग़म को भुलाकर,
बेटे को अपना संसार बताया था।
हर शौक पूरे हुए परवरिश में तो
बेटा बड़ा होकर विदेश जाता है।
मैं घर जल्दी तुमसे मिलने आऊंगा
हर साल एक यही संदेशा आता है।
माँ के अब सब अंग कमजोर है,
पर इंतजार में ममता की ताकत है।
वैसे कमजोर नहीं है पर,
आजकल उसे कमजोर समझना,
कुछ बेटों की आदत है।