Maa
Maa
मैने कुछ अपनो को कहते सुना था
शायद ताना ही मारते सुना था
मेरी माँ भगवान की पूजा नहीं करती
सुबह-शाम दीया नही जलाती
आरती नहीं करती ...
सत्संग में नहीं जाती ...
कीर्तन नहीं करती...
प्रवचनों और कथाओं को सुनने नहीं जाती..
बहुत ही अधार्मिक है मेरी माँ
बड़ी नास्तिक है मेरी माँ
आसपास की धर्म का डंका पीटने वाली औरतें बहुत प्रभावित करती थी
घण्टी बजा बजा कर भगवान को भोग लगाती वे धर्म प्रिया औरतें बड़ी पूज्या लगती थी
पर जैसे जैसे बड़ी हो रही थी मैं
आँखे भला-बुरा समझने लगी थी
तब सच मे ही धर्मान्धता से ढकी मेरी आँखे खुली थी
मेरी एक मात्र माँ ही सिर्फ इन्सानियत के धर्म पर चलने वाली सती बनकर मेरे मन मन्दिर में खड़ी थी
अपने बच्चो को गर्म गर्म रोटी खिला सके जब स्कूल काॅलेज से लौटे
रात रात भर पुराने धुराने स्वेटरों को उधेड़ कर भाप पर ऊन के बलों को खोलती थी
हमारे पढ़ाई करने के साथ-साथ जाग सकें इसलिए खुद भी स्वेटर बुनती रहती थी
हमारे सोने के बाद सोती थी हमारे जागने से पहले जाग चुकी होती थी
कभी आराम करते नही देखा था दिनभर गृहकार्य मे ही व्यस्त देखा था
दादी बाबा की सेवा प्रथम पूज्य गणेश पूजा समझकर करती थी
दादी बाबा की जरूरत को उनके कहने से पहले ही पूरा करती थी
कभी गुस्सा करते नही देखा... मुस्कुरा कर ही कर्तव्यनिष्ठा की भांति सबका ख्याल रखती थी
खुद दो सूती धोती मे पूरा साल काट देती थी ..कभी सजते संवरते देखा ही नहीं
कभी किसी से भी शिकायत करते देखा ही नही खुद दर्द सहकर दूसरो के दर्द को हर लेती थी
सर्दी मे पास-पड़ोस की औरतों के साथ धूप में गप्पे मारते नहीं देखा किसी की बुराई करते नहीं सुना
समय के अभाव में ही हमारे लिए कपड़े सिलती... स्वेटर बुनती सुन्दर सुन्दर डिजाइन बनाती
कभी क्रोशिया से हमारे दहेज में देने को थाल पोश बनाती बुआ जी आएंगी गर्मी की छुट्टी में तो उनके लिए अपने हाथ से साड़ी काढ़ती सबकी खुशी के लिए खुद को भूले रहती
सच कहती थी वे औरतें मेरी माँ बड़ी नास्तिक है....बहुत ही अधार्मिक है
कभी पूजा नहीं करती ....कभी सत्संग नहीं करती
हम सब के पालन पोषण में ही व्यस्त रहती कभी ताऊ जी की पसंद के चीले बनाती कभी बाबा की पसंद का हलवा
पिताजी के भक्ति मार्ग मे कभी बाधा नहीं बनी
सब चिढ़ाते थे कि पिताजी के साथ कभी वृन्दावन नहीं जाती ..ऋषिकेश नहीं जाती
तब वो चुप हो जाती थी कि उनकी तपस्या ही अपने बच्चो को पालने पोसने की लगन और अपने बड़ों के प्रति कर्तव्य निष्ठा ही वक्त को जवाब देगा
और वो पिताजी का आश्वासन देता कथन "कि मै अपने माता पिता को तीर्थ यात्रा करा लूँ तुम्हे तुम्हारे बेटे तीर्थ दर्शन कराएंगे
और वो सीधी-सादी औरत कभी ना शिकायत करने वाली माँ तब भी हंस देती थी और अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर रही
आज मै खुद माँ हूँ दो बच्चो की माँ वो अकेले ही हम पाँच बच्चो को पालती पोसती रही
हम तो अनुकूल परिस्थिति मे होते हुए भी झुंझला जाते है पर माँ को कभी भी विपरीत परिस्थिति मे भी कमजोर पड़ते नही देखा
पूरे भरे पूरे परिवार को बल्कि कुटुंब को अपने आत्म बल...समर्पण ...और त्याग से एकजुट करे रखा
हम दो बच्चों के परिवार को एक करने मे ही अक्षम होते हैं पर माँ पचास साठ सदस्यों के परिवार को अपने प्यार और त्याग से बांधे रखती थी
पर हाँ सच कहती थी वे औरतें
मेरी माँ बहुत नास्तिक है
मेरी माँ बड़ी अधार्मिक है
गजब की मिट्टी से बनी है माँ मेरी
सहनशक्ति के ताप से तपी है माँ मेरी
शरीर बुढ़ापे की मार झेल रहा है
अकेलेपन का संताप झेल रहा है
पर आज भी दूर बैठे ही हम बच्चो के दुख-दर्द जान लेती है
बिना जताए ही हमारे जीवन के लिए संकटमोचक बनी रहती है आज भी
किसी को दर्द ना देने वाली माँ समय से मिले दर्द को छिपाकर मुस्कुराती रहती है माँ
हाँ मेरी माँ बहुत नास्तिक है
हाँ मेरी माँ बड़ी नास्तिक है
पर सबसे बड़ा सच तो ये है आज तक
किसी के आँसुओं की कर्जदार नहीं है मेरी माँ
किसी के दुःख का कारण नहीं है मेरी माँ
हम जैसे अहसान फरामोश बच्चो के पापों को हरने वाली माँ गंगा ही है मेरी माँ.....हाँ माँ गंगा ही है मेरी माँ
वन्दना"वामा"
10-5-2017