क्यूँ आती है हंसी
क्यूँ आती है हंसी
दो लबों पर
आती है हंसी
कैसे सोचा करती हूँ
यूँ बैठे तन्हा
होती है हंसी
कितनी दिलकश
सोचा करती हूँ अक्सर
देख होठों पर इसे
अठखेलियाँ करते
पर पाई न समझ
होती है ये हंसी खुशी की
या पीड़ा को छुपाती परत
आती है लाली होठों पर
सुर्ख लहू से छन कर
या फिर फूट जाता है
लावा जब इन तपते आँसूओं का
तो बरबस ही
खिल जाती है हंसी
इन दो लबों पर
सोचा करती हूँ मैं अक्सर
होती न हंसी गर
ये इन लबों पर
तो दहकते अंगारे
बन फफोले आंसूओं के
इन होठों पर
है कितनी निर्भीक ये
हंसी जो चुपके से
छुपा जाती है पीड़ा
सारी इन दो लबों पर
छन – छन कर
इन आंसूओं की धारों से
खामोश करती रहती है
अठखेली इन होठों पर
कौन जाने फिर
मुस्कुराता है गम कोई
हंसी में छुप कर
या है हंसी भूलाती
गम कोई ||
~~~~ मीनाक्षी सुकुमारन ~~~~