ज़िंदगी के पन्नों पर
ज़िंदगी के पन्नों पर
लिखी है मैंने ज़िंदगी के कागज़ पर एक गज़ल
बस इंतज़ार है तुम्हारी एक नज़र की रहमत का.!
"छू लो ना तुम"
लफ़्ज़ ज़िंदा हो जाएँगे जी उठेंगे मेरे एहसास.!
उस मंदिर की चौखट पर टकराए थे जब हम-तुम,
उस पल को सँवारा है पहली नज़र के पहले स्पंदन की रंगोली पूरी है
पहले शेर की पंक्तियाँ पढ़ो है रंग बिरंगी.!
मेरी गलियों के चक्कर काटते तुम्हारा सीटी बजाना,
ओर आधी खिड़की खोलकर तुम्हारी झलक पाना वो बचकानी
हरकत पर दिल का धड़कना
उफ्फ़ लफ़्ज़ हलक में ही अटक गए थे क्या लिखूँ उस अहसास पर.!
वो दरिया के साहिल पर बैठे डूबते सूरज को देखकर
मेरे गेसूओं से तुम्हारी ऊँगलियों का खेलना,
देखो पाँचवे शेर में खिलखिलाता हंस रहा है वो लम्हा.!
वो चाँदनी रात में पायल निकालकर तुमसे मिलने चुपके से आना,
टिमटिमाते तारों की गवाही संग झूठमूठ के फेरे पढ़ना
देखो ज़िंदगी का कागज़ हंस रहा है मुझ पर.!
चल पड़ी थी तुम्हारे कदमों के पिछे तपती धूप में नंगे पैर,
ओर मेरे पग-पग तुम्हारी हथेलियों का धरना कैसे भूलूँ
लो लिख ही तो दिया है वो आशिकाना मंज़र.!
नहीं लिखा वो मनहूस लम्हा जिस मोड़ पर रिश्ते की नींव हील गई थी,
तुम्हारी नज़रों का बदलना, मेरी हसरतों का टूटना आज भी दिल दुखाता है.!
हाँ
"लिखूँगी कभी वो हादसा भी आज मन उदास नहीं"
आज तो बस हसीन पलों की यादें उभरी है, तुम पढ़ लो,
धड़कन की तान से दर्द की ताज़ा एक गज़ल उभरी है।।