मैं चलती चली जाती हूँ
मैं चलती चली जाती हूँ
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अपने ख्वाबों में
रूकती हूँ
ठहरती हूँ
साँस भी लेती हूँ
देखती हूँ खड़ा एक पेड़ वहाँ
उसमे बैठी एक गिलहरी
मूंगफली खाने की कोशिश में
मुझे देखते ही भाग जाती है
नीचे कुछ चीटींया एक कतार में
कोई मार हुआ कीड़ा लिए
आगे बढ़ रही हैं
और मैं वहाँ से आगे बढ़ती हूँ
देखती हूँ एक नदी को
कल कल बहती हुई
मेरे साथ वो भी रुक गई
जैसे मेरा साथ दे रही हो
मेरी तरह उसकी भी यात्रा चल रही है
कुछ देर वही बैठ गई मैं
अपने पाँव भीगाती हुई
कुछ देर में फिर बढ़ूँगी
नदी की तरह
फिर चलूँगी
अब शायद मिलूंगी अपने सागर से
हाँ बिलकुल
उस नदी की तरह
जो मिलेगी जाकर
पाने अपना वजूद
खोने अपना सबकुछ
जाकर मिलेगी
और सागर भर लेगा उसे
अपने आगोश में....