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David Singh

Comedy Others

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David Singh

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बाद नशे के

बाद नशे के

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अफ़सोस है जाते थे जहां बिला नागा,

कल ही वहाँ नहीं थे जब मयख़ाना गिरा.

 

जाम तो शीशा है, टूट भी गया तो नया हासिल है,

ग़म तो यह है की हाथों से पैमाना गिरा.

 

इश्क़ से साबक़ा न पड़ा था अब तलक,

पी के जो लडखडाये, सबने कहा दीवाना गिरा.

 

ख़ुदा के खौफ़ से न लगे कभी मुंह को,

मगर जब लगाई तो लगा बुतख़ाना गिरा.

 

नशा आज कुछ जुदा जुदा सा है पैमाने का,

फिर इसमें पुराना इक फ़साना गिरा.

 

होशोहवास में थे मयख़ाने के बाहर बेगानों में,

अन्दर दौर चला शब भर, फिर इक इक बेगाना गिरा.

 

ज़ख्म दिल पे लगा शुक्र है फिर भी इतना,

नींद में ना थे जब ख्वाबों का आशियाना गिरा.

 

मुद्दत बाद मेरे साथ बैठ कर पी उसने,

शिकवा दो दिलों से उस दिन पुराना गिरा.

 

हाथ में जाम और लबों पे नाम बेवफा का,

पी के जो यूँ गिरा वही अन्दाज़ाना गिरा.

 

मर्द हैं, हो के बदनाम जायेंगे मयख़ाने में,

छिप के पी के जो गिरा, ज़नाना गिरा.

 

कंगन खनका जो साक़ी के सुराही वाले हाथ का,

जन्नत से जैसे फरिश्तों का लिखा इक तराना गिरा.

 

ग़मों की हथकड़ी और यादों की जंजीरें थीं,

इक सैलाब-ए-घूँट से फिर हर क़ैदख़ाना गिरा.

 

वादा निभाया यूँ यार-ए-मुफ़लिस ने ख़ुदकुशी कर ली,

अंदाज़ पे उसके इस हर अंदाज़-ए-अमीराना गिरा.

 

फ़सानों का गर्म था बाज़ार महफ़िल में,

नज़्म के आगे मेरी हर इक फ़साना गिरा.


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