तुम भी तो हो मतलबी
तुम भी तो हो मतलबी
मैं अकसर पूछती थी
वो लोग कैसे होते है
जो मतलब के लिये जीते है?
अपनों की तरफ़ इशारा कर
किस्मत ने मुझसे पूछा-
साथ जिनके रहती हो
उन्हें नहीं पहचानती क्या?
मगर वे तो मेरे अपने है
मैने आहिस्ते से कहा
अपने!!
हँसते हुए उसने कहा
मैने फ़िर पूछा
वो लोग कैसे होते है
जो मतलब के लिये जीते है?
आईने की तरफ़
इशारा कर इस बार
किस्मत ने मुझसे पुछा
अपनी शक्ल भी
नही पहचानती क्या??
मतलबी; हाँ मतलबी
तुम भी तो हो मतलबी
जीती हो बस अपने
मतलब के लिये
जब खुशियों में डूबी हुई थी
तुम्हारी ये जिन्दगी
तब सबके साथ थी तुम
और आज अपने दुखों
को अकेली जी रही हो
तुम भी तो हो मतलबी
सबकी तकलीफों को
बाँट लेती थी जो तुम
और आज अपने दर्द
खुद पी रही हो
तुम भी तो हो मतलबी
सबकी जरुरतों में
जरूरत बन जाती थी
और आज अपनी जरूरतें
अकेले समेट रही हो
अगर वे तेरे अपने है
तब तुम हो न मतलबी
बस जीती हो
अपने मतलब के लिये
मतलबी...