ज़िंदगी की मुसाफ़िर
ज़िंदगी की मुसाफ़िर
मेरे अहसासों को सिर्फ़,
अल्फ़ाज़ समझना तुम..
छलकें आँखों से तो बरसात,
होंठों पे मुस्कान को,
बहार समझना तुम !
मुसाफ़िर हूँ ज़िंदगी की,
उठना गिरना तो लगा रहेगा..
अगर ठहर जाऊँ तो,
मेरी हार समझना तुम !
बातों का सिलसिला तो,
अजनबियों के वास्ते रहा..
जब मैं ख़ामोश हो जाऊँ तो,
मेरी पुकार समझना तुम !
"जहाँ अहसास नहीं,
वहाँ अहसान होते हैं",
उठे रहेंगे मेरे हाथ,
इबादत के लिए
आए जो हिचकी तो,
मेरी अज़ान समझना तुम !