वो जमाने थे
वो जमाने थे
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वो जमाने थे
जब छतों पर लड़कियों का आना,
खिड़कियों के दरवाजों की
झिर्रयों से झांकना,
नीचे गली के नुक्कड़ों पर,
पान की दूकानों,
या अखबार की स्टॉलों पर,
मोहल्ले के लौंडे-लपाटों का जमघट,
बेरोजगारों का एक झुंड,
जो बापों की लताड़ सुन,
अक्सर इन अड्डो पर जमा हो जाते,
और ढीठो की तरह
उधारी से ली सिगरेट
और बालों को झटक
धुंए में उड़ा देना बाप की नसीहत,
न जाने कितनी प्रेम-कहानियाँ बनती,
कुछ मंजिल पाती कुछ धूंओं में उड़ जाती,
या झिर्रियों में कैद होकर रह जाती,
वो जमाने इतने मुखर कहाँ थे,
के बापों से बगावत करते,
हाँ लड़कियाँ छतों पर आती,
और फिर उसी तरह लौट जातीं।