खाली मकान सा...
खाली मकान सा...
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खाली मकान सा हूँ मैं
अंदर से एक तूफ़ान सा हूँ मैं...
मत कर ज़िंदगी सितम मुझ पे
वैसे ही थोड़ा परेशान सा हूँ मैं ...
दुनिया की भीड़ में खोया जैसे
फिर भी खुद से बेगाना सा हूँ मैं ...
तन्हाइयों में कहाँ अकेला पाया
वहां भी तेरी यादों में बेक़रार सा हूँ मैं ..
दिल में थोड़ी ख़्वाहिश और
जज़्बात लिए फिरता हूँ...क्यूँ की
आज भी थोड़ा इंसान हूँ मैं ...