खड़ा रहा हूँ मैं
खड़ा रहा हूँ मैं
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नज़रें आसमान पर टिकाये
ज़मीन से जुड़ा रहा हूँ मैं,
हिला न किसी के हिलाने से
बस अड़ा रहा हूँ मैं,
कसर कोई छोड़ीं नहीं गई
सूखा मुझे बनाने में,
करामात फिर भी देखिये के
भीतर से हरा रहा हूँ मैं,
किसी की दुकान तो किसी के
मकान में जड़ा रहा हूँ मैं,
आलम ये है के सभी की
नज़रों में चढ़ा रहा हूँ मैं,
लगा है ज़माना मशक्कत में
मुझे हर पल गिराने की,
हौंसला देखिएगा के टूटकर भी
सीधा खड़ा रहा हूँ मैं,
झूठी न सच्ची बातों में उलझा सका
कोई वजूद मेरा,
हर मुश्किल वक्त में भी यकीनन ही
उड़ा रहा हूँ मैं।।