वो बात
वो बात
कभी कही ना थी वो बात किसी से,
जुबां पर वो मंडराती थी फिर दिल में जा बस जाती थी।
आँसु बन आँखों में बसती थी वो,
मन तो फुट-फुट कर रोता था।
उन सिसकियों को हम दबा लेते थे,
मन में कि कोई सुन ना ले उन्हें,
और फिर हमारे दर्द का मज़ाक बन जाऐ।
हमसे खफा-खफा थी यह दुनिया,
हम कमजोर नहीं थे।
हमारी मजबूरी तो समझो कोई,
तुम ने तो छोड़ दिया वहाँ जहाँ हाथ थामना था।
कह ही नहीं पाए
बात दिल का दर्द बन कर ही रह गई।