औरत तेरी पहचान हैं
औरत तेरी पहचान हैं
तुझे जन्म तेरी माँ ने दिया, बचपन तेरी बहन ने दिया,
औलाद बीवी ने दिया और ख़ुशियाँ भी बेटी ने दिया।
तेरी निगाहें है दूसरों की बहन, बेटी और बीवी पर,
ना जाने क्यों अधिकार जताता है दूसरों के लहू पर,
सुना है मैंने कि किसी भी मर्द को होता दर्द नहीं ,
पर दूसरों को दर्द देनेवाला भी कोई असली मर्द नहीं।
फिर मर्द बनकर दूसरों को दर्द देना कहा का न्याय है,
चली गई निर्भया अब भी जाने कितने अन्याय है।
बच्ची आसिफा का नासूर भी हत्यारों को दिखा नहीं,
अनगिनत केस अब भी फाईलों में है यूँ ही दबा कहीं।
ज़रा सोचो अगर ये हर बेटी पर गंदी निगाहें डालेंगें,
मासूमियत को ये दिमक जैसे साफ कर डालेंगे।
तेरा वजूद औरत और तेरी पीढ़ी भी औरत से हैं,
न भूल तेरी उम्र बढ़ती आखिर उसके एक व्रत से हैं।
कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली को सम्मान दे,
कुछ ना ही सही तो खुद को ही नई पहचान दे।
बात ये याद रखना जब तक तुझमें जान हैं,
हर एक सफ़र में औरत ही तेरी पहचान हैं।