निर्वाह
निर्वाह
रूठों को
मनाते रहिये
दूरियां कुछ
इसी तरह
मिटाते रहिये।
शाम से सुबह
तलक साथ तो
चलिए
फर्क दिख जाए
कहीं तो मिटाते
चलिए।
दो इंसानों में
फितरती फर्क
बहुत वाजिब है
ऐब होंगे तो
खूबियों भी
होंगी
हाथ पकड़ा है तो
संग चला कीजे।
वक्त रेत सा है
फिसला तो
फिसलता जाएगा
मुट्ठियाँ बाँध लें
यह रिश्ता है
फिसलने
ना दीजे।
हमारा क्या है
हम आज हैं
कल नहीं होंगे
इत्र सी
खुशबू हैं
मर्तबान में
कहाँ रखा कीजे।