मदनोत्सव
मदनोत्सव
अमवा के डार तो, बौराय गई री सखि
हियवा में मारे कटार !
खेतवन में, सरसों के फूल हैं बिछे सखी
पीत की आई बहार !
तन-मन में वास कियो, कैसो अनंग सखी
कोयल की सुन मीठी तान !
भौरों की गुंजन से, गूँजत है उपवन सखि
सुमनों से बहे रस-धार !
तोते के रथ पर, सवार है मनसिजा सखि
लिए हाथन में धनुष औ बाण !
फूलों का बना है, मदन का धनुष सखि
ताने शहदन की मीठी रास !
लहर लहर लहराये, लाली लाली ध्वजा सखि
बीचन में मकर सजाय !
धनुषन की कमान में, गन्ने की मिठास सखि
लोभी मधुमक्खी रस पी जाय !
कंदर्प ताने अशोक के, श्वेत-श्वेत फूल सखि
हिया दियो पवन महकाय !
पियर-पियर वसन की, झाँकी है सजी सखि
श्वेत, नील कमल खिल जाय !
दप-दप दमकत हैं, चमेली के फूल सखि
आमन के बाग बौराय !
मनमथ ने तान लिओ, मारण के बाण सखि
पलाशन का रंग चटकाय !
रागवृंत ने मार दिओ, उन्मादन के बान सखि
ऋतुराज भी जाय बौराय !
लाल-लाल टेसुवन ने, कानन दहकाय सखि
रति ने दिओ भौंह मटकाय !
मन में मदन ने, लगाय दिओ अगन सखि
पिय ने तो दिओ बिसराय !
खग, मृग, वृंद भी, उन्मादन में बिंधे सखि
पुष्पधंव से कौन बच पाय !
फूलन के बाणन से, आहत है यौवन सखि
कौन प्रेम रस सुधा बरसाय !
आनन में, कजरन में, हिय में हुलास सखि
रतिकांत से कोई न बच पाय !