तुम कहाँ हो
तुम कहाँ हो
तुम कहा हो ....... हो वही जहा जम़ी-ओ-आसमा हो....
पर कहा हो ?
अपने आँखो मे लगे काँच से टूट कर रो दो
या फिर अपने पायल को पहने दो कदम चल दो,
मै समझ जाऊँगा तुम कहा हो
मै समझ जाऊँगा तुम कहा हो
जहां सावन मे समा जलकर थंडी हवा बहा दे
जहां कोई बरगद का पेड़ अपने कंधे से झुला गिरा दे
या फिर वो बचपन जो महेज खिलौनो को देख खेल दे,
ये खयाल बता देंगे तुम कहा हो
मै समझ जाऊँगा तुम कहा हो
जिस महल में एक राजा की तीन शबनमी गुड़िया होगी
जिस दौलत को दुनिया चाहती है वो वहा माँ होगी
जहां दुपटो में अदब से भरी मगरिब की नमाज़ होगी,
ये तहेजीब-ओ-सहेर बता देंगे तुम कहा हो
मै समझ जाऊँगा तुम कहा हाे
अंधेराे मे बारिश होती होगी जिधर
समंदर में लहेरे नहीं होंगे उधर
कशतिया वहाँ की फिर भी डूब जाती है अक्सर,
ये नजारे बता देंगे तुम कहा हो
मै समझ जाऊँगा तुम कहा हाे
इंसान जहां अंधेराे में परछाई ढूंढता होगा
कफन जहां लिबाज बनकर खुश होता होगा
काफिला जहां किसी के तकलीफ को सुन दौडता होगा
ये फिक्र बता देंगे तुम कहा हो
मै समझ जाऊँगा तुम कहा हाे
रास्ता जिस पर उसके अतितों का फूल महेकता होगा
सूखे पेड़ो के दामन में जहां फूल गिरता होगा
अंधेरा की आगोश मे जरूर वहाँ एक टूटा घर होगा,
ये ना चाहते हुए भी बता देंगे तुम कहा हो
मै समझ जाऊँगा तुम कहा हाे
जब तुम्हे मेरी आँखो से पर्दा किया जाएगा
तुम्हारे गुलाबी लबों को ढक दिया जाएगा
तुम्हारी जुल्फों में महेंदी लगाकर सनम,
मेरी निगाहों को इस कदर गाफिल किया जाएगा
मै भी आशिक हूँ , तेरा खुदा कि कसम
इन सब बातों मे मेरा दिल कहा अाएगा,
लिख रहा हूँ अभी भी ये सोचकर दिल मे
दिखने वाला मेरा क्या खूब नज़र आएगा,
ये चाहत बता देंगे तुम कही हो
मै समझ जाऊँगा तुम कहा हाे
मै समझ जाऊँगा तुम कहा हाे