एक कहानी क़लम से
एक कहानी क़लम से
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शोर तो होगा अंदर,
सुना दिया बाहर ?
पिया था अमृत,
बन गया जहर !
ढूँढ लाया हूँ वो शहर,
जहाँ इश्क़ का रिवाज नहीं,
वहाँ है तो बेगम-बादशाह,
सर पे कोई ताज़ नहीं।
गद्दार थे उस शहर में,
जो उनका राज़ ना चलने दिया,
प्यार था उनका सच्चा ना दिल में भी दिया।
यूँ तो रखा ही था ताज़ सर पर,
के हो जाएंगे उस पार,
डूब गई वो नाव जिसे,
समंदर ने ना जलने दिया !
मुझे पता नहीं, हाँ कुछ याद आ रहा है,
समंदर में नाव के साथ खून भी बहा है।
TO BE CONTINUED ...