ओस की वह बूँद
ओस की वह बूँद
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जाड़े का मौसम
सुबह की ठंडी हवाऐं
और अचानक दृष्टि पड़ी उस पर
वह ओस की बूँद !
कितने छोटे से क्षेत्र में सिमटी
बैठी घास पर
ताकती शून्य से अनंत की ओर
मानो लाज के घूँघट में सिमटना चाहती हो;
छिपाना चाहती हो
अपना वृत्तीय स्वरुप
घनेरी रात के बाद की सुबह में
हलकी धूप के स्पर्श से
हर्षातिरेक में झूमना चाहती हो,
बजना चाहती हो वह
घुँघरूवओं की तरह
बूँद !
पूर्ण है स्वयं मैं
समेट सकती है
विश्व को स्वयं में
स्त्रोत है नवशक्ति का
वह ओस की बूँद
प्रतीक है जीवन का
गति का !