अब चलना है
अब चलना है
यह पाल उठा दे
रे माँझी!
अब चलना है
तट से अब तेरा कोई
सम्बंध नहीं है मीत
क्यों तू इससे जोड़ रहा है
बरबस अपनी प्रीति
‘चार दिना की चाँदनियाँ’
-यह बड़ी पुरानी रीति
तू जिसके पीछे
दौड़ रहा
मृगछलना है
जो अभी लिखा
वह गीत उठा दे
रे माँझी
अब चलना है
जानबूझकर
नहीं महकते हैं
प्रातः के फूल
फैल रहा तम
क्योंकि बिछे हैं यहाँ
शूल ही शूल
कब से यहाँ उड़ रही है
यह अवसादों की धूल
यह पछताकर
हाथों को
फिर-फिर मलना है
जो छिपी हुई
वह गंध उठा दे
रे माँझी!
अब चलना है
अब क्यों
यहाँ खड़ा है माँझी!
क्यों बाँधे है नाव?
देख रहा जिस ओर
नहीं है
अब वह तेरा गाँव
खूब चमकने दे
मन के
ये रंगबिरंगे घाव
यह पलकों की सीपी से
मोती
जो जनम गया-
वह दर्द उठा दे
रे माँझी
अब चलना है
यह पाल उठा दे
रे माँझी!